18 Sep
 

भारतीय नामों का देवनागरी में लेखन

कर्नाटक सरकार ने हाल में निर्णय लिया कि कर्नाटक के शहरों के नाम रोमन लिपि में मूल कन्नड़ उच्चारण के अनुसार लिखे जाएँगे. उन्होंने Bangalore के स्थान पर Bengaluru लिखने की सिफ़ारिश की. ज़्यादातर हिंदी अख़बार इसे ‘बेंगलुरू’ लिखते हैं, जबकि इसका सही उच्चारण ‘बेंगलूरु’ है. इस वैषम्य का मुख्य कारण है कि दक्षिण की भाषाओं में शब्दों के अंत में ह्रस्व स्वर की प्रधानता है, हिंदी में दीर्घ स्वर की. फिर भी कोई अंत में ‘लूरू’ नहीं लिखता.

हम चाहेंगे कि संवाददाता अपने मन से अन्य भाषाओं के रूप न गढ़ें, बल्कि शोध वृत्ति से काम लें. शहर या गाँव के लिए दक्षिण की भाषाओं में ‘ऊर’ शब्द है. बोलचाल में यह ‘ऊरु’ हो जाता है और कन्नड़ में इसी रूप में लिखा भी जाता है. अगर यह बात समझ में आ जाए, तो हिंदी में ‘वेलूर, करूर, कण्णूर, त्रिश्शूर, नेल्लूर, गुंटूर’ आदि शब्दों के नागरी के लेखन में एकरूपता आ सकती है. कर्नाटक के ‘होसूरु, बेलूरु’ आदि शब्दों को भी सहजता से समझ सकते हैं.

समस्या यही है कि हम अपने ही देश के नामों को अंग्रेज़ी से पहचानने की कोशिश करते हैं. पुरानी बात है, हिंदी में एक लोकप्रिय अभिनेता हुआ करते थे ‘जॉय मुखर्जी’ (अंग्रेज़ी में Joy). मैं समझ नहीं पाया कि बंगाल में लोग अंग्रेज़ी में नाम क्यों रखते हैं? बहुत बाद में पता चला कि उस अभिनेता का नाम था ‘जय’ जिसे बांग्ला भाषा में ह्रस्व ओकार के साथ बोलने की प्रवृत्ति के कारण रोमन में ‘joy’ लिखा जाता था और हमने अंग्रेज़ी रूप से प्रभावित होकर ‘जॉय’ कर दिया. इस तरह रोमन में कोई अपना नाम Subroto लिखे तो हमें हिंदी में ‘सुब्रोतो’ नहीं लिखना चाहिए, क्योंकि बांग्ला भाषा में लिखित रूप ‘सुव्रत’ ही है. (अभी हम व/ब की चर्चा नहीं करेंगे) इस तरह मानक हिंदी में शब्द होगा ‘सुव्रत’; अगर यह नाम ‘सुव्रत रेड्डी’ होगा तो हम /सुव्रत/ का उच्चारण करेंगे (हिंदी की तरह /सुव्रत्/ नहीं) और ‘सुव्रत लाहिड़ी’ होगा तो /सुब्रोतो/ उच्चारण करेंगे. भारत में अंग्रेज़ी का व्यवहार करने वाले यह जानते हैं कि अंग्रेज़ी में व्यवहृत फ़्रेंच शब्दों के अंत में ‘t’ का उच्चारण नहीं होता, जैसे ‘bouquet’ में, रूसी शब्दों के अंतिम ‘व’ का उच्चारण ‘फ़’ होता है जैसे ‘Checkov’ में. फिर क्या कारण है कि हम अपने ही देश के नामों को नहीं पहचान नहीं सकते. यह प्रवृत्ति आज भी जारी है. हाल में तृणमूलक कांग्रेस के एक नेता चर्चा में थे. अंग्रेज़ी अख़बारों में नाम था Shrinjoy और हिंदी अख़बारों में शृंजॉय आदि रूप सामने आये थे. कितना सुंदर नाम – धनञ्जय की तरह श्रीञ्जय, वह जिसने श्री (लक्ष्मी) पर अधिकार कर लिया हो. (श्रीं + जय) करोड़ों तक पहुँचने का दावा करनेवाले समाचारपत्र किसी भाषावैज्ञानिक से परामर्श करने की आवश्यकता तक क्यों नहीं समझते.

अब हम उच्चारण के सही लेखन के एक और पहलू पर विचार करेंगे. तमिलनाडु के राजनेता करुणानिधि की सुपुत्री का नाम है कनिमॊऴि. यह नाम मैंने हिंदी निदेशालय द्वारा सुझाये परिवर्धित देवनागरी के अनुसार लिखा है, सामान्य देवनागरी में इसका लेखन संभव नहीं है. ‘कनि’ का अर्थ है ‘फल’ और ‘मॊऴि’ का अर्थ है ‘भाषा’. स्त्री के नाम के रूप में इस शब्द का अर्थ है ‘मधुरभाषिणी’. सवाल यह है कि इस नाम को हिंदी में कैसे लिखा जाए, जिससे हम मूल उच्चारण का आभास दे सकें. इसका उच्चारण अधिक कठिन नहीं है. गौर से सुनिए कि उर्दू का शायर मिसरे के अंत में ‘जिगर’ कैसे बोलता है. या अमेरिकी अंग्रेज़ी में ‘car’ कैसे बोला जाता है. तमिल में यह ध्वनि शब्द के बीच में भी बोली जाती है। संवाददाता उच्चारण को पकड़ने की कोशिश में कहीं ‘मोड़ी’ लिखते हैं, कहीं ‘मोई’ लिखते हैं, कहीं ‘मोलि’ लिखते हैं. भाषाएँ दूसरी भाषाओं की हर नयी ध्वनि के लिए नया वर्ण नहीं बना सकतीं, न ही वर्ण बनाकर उसकी ध्वनि को पकड़ सकतीं. मेरा सुझाव है कि लेखन में हम ‘कनिमोड़ि’ अपना लें और विदेशी भाषा के शब्द के रूप में इसे पहचानें. /मो/ का ह्रस्व उच्चारण करें, जैसे ‘मोहलत’ में. कोई बेहतर विकल्प हो तो उसका स्वागत करूँगा.

भारतीय नामों की विकृति के लिए शायद सारी भाषाएँ दोषी हैं. दक्षिण के शब्द स्वरांत उच्चरित होते हैं. इसलिए हिंदी भाषी जिसे Ram लिखते हैं (उच्चारण /राम्/), वह दक्षिण की भाषाओं में Rama है (उच्चारण /राम/, ‘रामा’ कतई नहीं). फिर दिल्ली का रामकृष्णपुरम हिंदी में रामाकृष्णापुरम क्यों हो जाता है?

तमिल भाषा में पुरुषवाची नामों के अंत में नकार लिखने की प्रवृत्ति है, जैसे मेरा ही नाम जगन्नाथन है. इस कारण ‘राम’ तमिल में ‘रामन’ बन जाता है. आज भी नोबेल पुरस्कार प्राप्त वैज्ञानिक सी. वी. रामन का नाम ठीक से लिखने वाले कम ही हैं. हमारे पूर्व राष्ट्रपति वेंकटरामन (Venkataraman) को लेखक ‘वेंकटरमण’ ही लिखते हैं. प्रसंग से उल्लेख करना चाहूँगा कि दक्षिण में ’वेंकटरमण’ नाम भी है, जो रोमन में Venkataramana लिखा जाएगा.

इसी तरह दक्षिण की भाषाओं में महाप्राण उच्चारण की कमी के कारण /त/ को ‘th’ से और /ट/ को ‘t’ से लिखने की प्रवृत्ति है. हिंदी भाषी ‘लता’ के रोमन रूप Latha को ‘लाठा’ लिख जाते हैं. इसी तरह का असर तमिल भाषा में भी दिखाई देता है. तमिल अख़बार Tripathi को ‘तिरुपति’ लिखते हैं. हमारे एक पूर्व उपराष्ट्रपति ‘पाठक’ के नाम को मैंने तमिल अख़बारों में ‘पदक’ ही देखा था.

निष्कर्ष रूप में कहना चाहूँगा कि हमें एक दूसरे को निकटता से जानने की आवश्यकता है. इसके लिए अंग्रेज़ी का सहारा लेना मुश्किल है क्योंकि अंग्रेज़ी भारतीय भाषाओं के उच्चारण को व्यक्त करने के लिए उपयुक्त नहीं है. हिंदी ही इसके लिए विकल्प है. हिंदी को राष्ट्र की संपर्क लिपि के रूप में अपना दायित्व निभाना चाहिए. हिंदी के विकास के लिए आवश्यक है कि लेखक और मीडिया इस दायित्व बोध से शीघ्र अवगत हो जाएँ.

जगन्नाथन

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sdvsdv    20/05/2015 10:06:03

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csac    22/05/2015 12:05:28

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mayank    21/06/2016 14:29:01

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mayank    21/06/2016 14:30:00

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